Proba-3 Mission: नमस्कार दोस्तों, कैसे हो आप सभी? आशा है कि आप सभी बहुत अच्छे होंगे। दोस्तो भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपनी प्रमुख रॉकेट PSLV के जरिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के Proba-3 उपग्रह को श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह लॉन्च पहले 4 दिसंबर को होना था, लेकिन उपग्रह में पाए गए ‘गड़बड़ी’ के कारण इसे टाल दिया गया था।
Proba-3 Mission: अनूठी तकनीक का प्रदर्शन
दोस्तों Proba-3 मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का एक इन-ऑर्बिट डेमोंस्ट्रेशन (IOD) प्रोजेक्ट है। यह मिशन उन्नत फॉर्मेशन-फ्लाइंग तकनीकों का प्रदर्शन करने के लिए तैयार किया गया है। इस मिशन में दो उपग्रह शामिल हैं:
- कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट (CSC):
सूर्य की बाहरी परत (कोरोना) का अध्ययन करने के लिए। - ऑकल्टर स्पेसक्राफ्ट (OSC):
CSC को सूर्य की चमक से बचाने के लिए, ताकि सटीक अवलोकन हो सके।
इन दोनों उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेजा गया है। ये इस तरह से डिजाइन किए गए हैं कि अंतरिक्ष में कुल सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse) को सटीक रूप से सिमुलेट कर सकें।
PSLV रॉकेट की भूमिका
यह लॉन्च PSLV का 61वां मिशन है। PSLV, इसरो का सबसे भरोसेमंद और सफल रॉकेट है, जिसे ‘वर्कहॉर्स रॉकेट’ भी कहा जाता है।
- रॉकेट की लंबाई: 44.5 मीटर
- वजन: 320 टन
- प्रक्षेपण का समय: 18 मिनट
- ऊंचाई: 600 किमी
Proba-3 Mission का उद्देश्य
दोस्तों Proba-3 Mission का मुख्य उद्देश्य दो उपग्रहों को सटीक रूप से एक निश्चित दूरी पर रखना है, जिससे वे एक सिंगल रिगिड संरचना की तरह काम कर सकें।
- इन उपग्रहों के बीच की दूरी और उनका सटीक नियंत्रण ESA की उन्नत तकनीक को दर्शाता है।
- यह विश्व का पहला प्रिसिजन फॉर्मेशन-फ्लाइंग मिशन है।
- इस मिशन की मदद से सूर्य की बाहरी परत (कोरोना) का गहराई से अध्ययन होगा।
Proba-3 Mission क्यों महत्वपूर्ण है?
1. सौर अवलोकन:
Proba-3 सूर्य के कोरोना का अध्ययन करके सौर गतिविधियों को समझने में मदद करेगा। यह जानकारी सौर तूफानों और उनके पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने में उपयोगी होगी।
2. फॉर्मेशन फ्लाइंग तकनीक:
दो उपग्रहों के बीच सटीक दूरी बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस तकनीक का उपयोग भविष्य में बड़े मिशनों जैसे स्पेस डेब्रिस क्लीन-अप और मल्टी-सैटेलाइट मिशन में किया जा सकता है।
3. भारत-यूरोप सहयोग:
यह मिशन भारत और यूरोप के बीच मजबूत वैज्ञानिक सहयोग का प्रतीक है। इससे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है।
Proba-3 Mission की विशेषताएं
- वजन: 545 किलोग्राम (दोनों उपग्रहों का संयुक्त वजन)
- लक्ष्य: सूर्य के बाहरी हिस्से का अध्ययन
- कक्षा: अण्डाकार कक्षा (Highly Elliptical Orbit)
ISRO की सफलता की कहानी
दोस्तों Proba-3 Mission ISRO द्वारा लॉन्च किया गया दूसरा ESA मिशन है। पहला मिशन, Proba-1, 2001 में PSLV रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था। Proba-1 ने अपनी एक साल की योजना से कहीं अधिक, 20 सालों से भी ज्यादा समय तक काम किया।
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PSLV: भारत का गौरव
PSLV की प्रमुख उपलब्धियां:
- 60 से अधिक सफल मिशन।
- 50 से अधिक देशों के उपग्रहों का प्रक्षेपण।
- कम लागत में उच्च प्रदर्शन।
🚨 ISRO successfully launches PSLV-C59/PROBA-3 mission from Sriharikota, Andhra Pradesh. pic.twitter.com/7cVOZZGQvV
— Indian Tech & Infra (@IndianTechGuide) December 5, 2024
Proba-3 Mission से क्या उम्मीदें हैं?
- यह मिशन अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई संभावनाओं को खोलेगा।
- सौर अवलोकन और फॉर्मेशन फ्लाइंग तकनीक में इस मिशन से मिली सीख भविष्य के बड़े मिशनों की नींव रखेगी।
- भारत और यूरोप के बीच और मजबूत साझेदारी की उम्मीद है।
इसरो की वाणिज्यिक शाखा: NSIL
दोस्तों यह मिशन NSIL (New Space India Limited) के तहत एक वाणिज्यिक प्रोजेक्ट था। NSIL इसरो की वाणिज्यिक शाखा है, जो अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए सैटेलाइट लॉन्च सेवाएं प्रदान करती है।
निष्कर्ष
दोस्तों Proba-3 Mission भारत और यूरोप के बीच अंतरिक्ष सहयोग का एक और मील का पत्थर है। इसरो का PSLV रॉकेट एक बार फिर अपनी विश्वसनीयता साबित कर चुका है। यह मिशन न केवल सौर अध्ययन में मदद करेगा, बल्कि फॉर्मेशन फ्लाइंग तकनीक को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।
क्या उम्मीद करें?
दोस्तों Proba-3 Mission अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा। यह मिशन इसरो और ESA की क्षमताओं को विश्व मंच पर और मजबूत करेगा।
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