नई दिल्ली: केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में भारतीय स्टार्टअप्स को एक सलाह दी, जिसने ऑनलाइन बहस को जन्म दे दिया। उनका कहना था कि भारतीय स्टार्टअप्स को खाना डिलीवरी जैसे कामों से हटकर तकनीक के गहरे क्षेत्रों में ध्यान देना चाहिए। इस बयान ने उद्योग जगत में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं पैदा कीं। जहां कुछ लोग इसे सही दिशा में एक कदम मानते हैं, वहीं कुछ इसे स्टार्टअप्स की मेहनत का कम आंकना बता रहे हैं।
पीयूष गोयल का बयान
दिल्ली में एक निवेश कार्यक्रम के दौरान पीयूष गोयल ने कहा, “हम खाना डिलीवरी और हाइपर डिलीवरी ऐप्स बना रहे हैं। सस्ता श्रम तैयार कर रहे हैं ताकि अमीर लोग घर से बाहर निकले बिना खाना खा सकें, जबकि चीन AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), EV (इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) और सेमीकंडक्टर्स पर काम कर रहा है।” उन्होंने सवाल उठाया, “क्या हमें आइसक्रीम (डिलीवरी ऐप्स) बनानी चाहिए या चिप्स (सेमीकंडक्टर्स)?” आगे उन्होंने कहा, “क्या हमें सिर्फ दुकानदारी करनी है?”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत हर साल सबसे ज्यादा STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) ग्रेजुएट्स पैदा करता है। फिर पूछा, “क्या हमें इस बात पर गर्व है कि हम डिलीवरी बॉयज़ और गर्ल्स बना रहे हैं?” इसके अलावा, उन्होंने ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स की बढ़ती संख्या पर भी सवाल उठाया, जो जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं, और स्टार्टअप्स से “असली आर्थिक उत्पादकता” पर ध्यान देने की अपील की।
उद्योग जगत की प्रतिक्रियाएं
पीयूष गोयल के इस बयान पर कई बड़े उद्यमियों ने अपनी राय रखी।
- आदित पालिचा (ज़ेप्टो के सह-संस्थापक):
ज़ेप्टो एक किराना डिलीवरी ऐप है, जिसके सह-संस्थापक आदित पालिचा ने X पर एक लंबा पोस्ट लिखा। उन्होंने कहा, “भारत के कंज्यूमर इंटरनेट स्टार्टअप्स की आलोचना करना आसान है, खासकर जब आप इनकी तुलना अमेरिका और चीन की तकनीकी उत्कृष्टता से करते हैं।” लेकिन उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी चार साल से भी कम समय में 1.5 लाख लोगों को रोज़गार दे रही है, हर साल 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा टैक्स दे रही है, और एक अरब डॉलर से अधिक विदेशी निवेश लाई है। साथ ही, ताज़े फल और सब्जियों की सप्लाई चेन को बेहतर करने में सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि चीन की बड़ी कंपनियां जैसे अलीबाबा भी पहले कंज्यूमर इंटरनेट कंपनी के तौर पर शुरू हुई थीं। उनका मानना है कि स्टार्टअप्स को नीचा दिखाने की बजाय सरकार और बड़े निवेशकों को ऐसे स्थानीय चैंपियंस को सपोर्ट करना चाहिए। - अशनीर ग्रोवर (भारतपे के पूर्व प्रबंध निदेशक):
अशनीर ग्रोवर ने गोयल के बयान की अहमियत को माना, लेकिन साथ ही नेताओं को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, “चीन ने भी पहले खाना डिलीवरी से शुरुआत की थी, फिर डीप टेक में आगे बढ़ा। उनकी नकल करना अच्छी बात है, लेकिन शायद नेताओं को भी 20 साल तक 10% से ज्यादा आर्थिक विकास दर का लक्ष्य रखना चाहिए, न कि आज के रोज़गार सृजन करने वालों को ताने मारना चाहिए।” उन्होंने बहस शुरू करने के लिए मंत्री को धन्यवाद भी दिया। - मोहनदास पाई (इन्फोसिस के पूर्व सीईओ):
मोहनदास पाई ने गोयल के बयान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारतीय स्टार्टअप्स को छोटा नहीं आंकना चाहिए। उनके मुताबिक, सरकार को डीप टेक स्टार्टअप्स की मदद के लिए कदम उठाने चाहिए। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को “स्टार्टअप्स के लिए शत्रुतापूर्ण” बताया और कहा कि एंजल टैक्स से स्टार्टअप्स को परेशान किया गया। साथ ही, रिज़र्व बैंक पर विदेशी निवेशकों को तंग करने का आरोप लगाया। उन्होंने तुलना की कि चीन ने 2014 से 2024 तक स्टार्टअप्स में 845 अरब डॉलर निवेश किया, जबकि भारत ने सिर्फ 160 अरब डॉलर।
क्या है इस बहस का मतलब?
पीयूष गोयल का सवाल एक तरफ सही हो सकता है कि भारत को तकनीक के बड़े क्षेत्रों में आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन स्टार्टअप्स का तर्क भी सही है कि कंज्यूमर इंटरनेट कंपनियां न सिर्फ रोज़गार दे रही हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान भी कर रही हैं। यह बहस इस बात की ओर इशारा करती है कि भारत को दोनों क्षेत्रों में संतुलन बनाना होगा – नई तकनीक को बढ़ावा देना और मौजूदा स्टार्टअप्स को सपोर्ट करना।
आप इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या भारत को सिर्फ “चिप्स” पर ध्यान देना चाहिए या “आइसक्रीम” को भी मौका देना चाहिए? अपनी राय ज़रूर बताएं!
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